भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मांग तेजी से बढ़ रही है, जो देश के परिवहन क्षेत्र के साथ साथ पर्यावरण और सस्टेनेबल के लिए भी एक महत्वपूर्ण बदलाव के लिया ज़रूरी है। यहाँ कुछ महत्वपूर्ण फैक्ट और डाटा दिए गए हैं जो भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की स्थिति को दर्शाते हैं:
भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की वर्तमान स्थिति
बाजार की स्थिति : 2025 में, भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के मॉडल्स की लॉन्चिंग पेट्रोल और डीजल वाहनों से अधिक होने की उम्मीद है, जिसमें 18 नए मॉडल शामिल हैं। यह पिछले दो वर्षों में हर साल 4-5 मॉडलों की तुलना में कहीं ज्यादा है।
सेल्स का रुझान : 2024 में, भारत में इलेक्ट्रिक कारों की सेल्स 19.93% बढ़कर 99,165 इकाइयों तक पहुंच गई, जो 2023 में 82,688 इकाइयों से अधिक है। हालांकि, इलेक्ट्रिक वाहन अभी भी कुल सवारी गाड़ियों की बिक्री में 2.4% से कम का योगदान करते हैं।
नए मॉडल और लॉन्च: 2025 में, कई प्रमुख ऑटोमोबाइल कंपनियां जैसे कि मारुति , हुंडई, महिंद्रा और किया अपने नए इलेक्ट्रिक मॉडल लॉन्च करने जा रही हैं3। मारुति की ई-विटारा और हुंडई की क्रेटा इलेक्ट्रिक जैसे मॉडल बाजार में उत्साह पैदा कर रहे हैं।
सरकारी पहल और नीतियाँ
FAME योजना: भारत सरकार ने फेम (Faster Adoption and Manufacturing of Hybrid and Electric Vehicles) योजना के तहत इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की हैं।
FAME II में सरकार ने पब्लिक औरशेयरिंग ट्रांसपोेर्ट के एलेक्ट्रीफाई करने पर ज्यादा फोकस किया है।
PLI Scheme: The Production Linked Incentive (PLI) योजना का जरिये देश में इसके मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना और एडवांस ऑटोमोटिव प्रोडक्ट्स के लिए इन्वेस्टमेंट को लाना है ।
कस्टम ड्यूटी में कटौती: मार्च 2024 में, सरकार ने 35,000 अमेरिकी डॉलर से अधिक कीमत वाले इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर कस्टम ड्यूटी को 100% से घटाकर 15% कर दिया, बस शर्त ये है की मनुफैक्चरर लोकल लेवल पर इन्वेस्टमेंट करें ।
इसके चैलेंजेस और पॉसिबिलिटीज :
चुनौतियाँ: भारत को 2030 तक इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में 30% हिस्सेदारी हासिल करने के लिए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इनमें कई राज्यों की एलेक्ट्री गाड़ियों की नीतियां क्लियर नहीं है या पजरोपर कोई पालिसी नहीं है , जो वास्तव में किसी चुनौती से कम नहीं है।
भविष्य की संभावनाएँ: भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों का भविष्य उज्ज्वल है, क्योंकि पब्लिक और प्राइवेट, दोनों चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश कर रहे हैं। इन इलेक्ट्रिक गाड़ीयों के नए मॉडलों की लॉन्चिंग और बढ़ती मांग से इलेक्ट्रिक वाहनों की बिक्री में वृद्धि होने की उम्मीद है।
जो की , भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों की दिशा में कदम बढ़ाने से न केवल पर्यावरण संरक्षण होगा, बल्कि यह देश की आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है।
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आखिर IMF काम कैसे करता है। .?
IMF में हर देश का योगदान और वोटिंग अधिकार उसके कोटा (Quota) पर निर्भर करता है। यह कोटा देश की अर्थव्यवस्था के आकार, वैश्विक व्यापार और भुगतान संतुलन जैसे मापदंडों पर आधारित होता है।
IMF में भारत की भूमिका: एक व्यापक विश्लेषण
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) वैश्विक आर्थिक स्थिरता और सहयोग का एक प्रमुख स्तंभ है। इसका मुख्य उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय मुद्रा प्रणाली को स्थिर बनाए रखना, आर्थिक असंतुलन को सुधारना और ज़रूरतमंद देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करना है। इस वैश्विक संस्था में भारत की भूमिका एक उभरती हुई शक्ति के रूप में लगातार बढ़ रही है। यह लेख विस्तार से बताता है कि भारत IMF में कैसे प्रतिनिधित्व करता है, उसकी वोटिंग पावर क्या है, और वह विकासशील देशों की आवाज़ कैसे बनता है।
“अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जो वैश्विक आर्थिक स्थिरता को बनाए रखने, सदस्य देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करने, और आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए कार्य करता है।”
IMF की संरचना में भारत की स्थिति
IMF की निर्णय लेने की प्रक्रिया दो मुख्य स्तरों पर आधारित होती है: Board of Governors और Executive Board। Board of Governors सबसे ऊंचा निर्णय लेने वाला निकाय होता है, जिसमें हर सदस्य देश का एक गवर्नर होता है। भारत की ओर से इस बोर्ड में आमतौर पर वित्त मंत्री प्रतिनिधित्व करते हैं और रिज़र्व बैंक के गवर्नर को वैकल्पिक गवर्नर नियुक्त किया जाता है। यह बोर्ड मुख्य रूप से नीतिगत फैसले करता है, जैसे कोटा में बदलाव, सदस्यता विस्तार और IMF की रणनीतिक दिशा।
वहीं, Executive Board IMF का स्थायी निर्णय लेने वाला निकाय है जो रोज़मर्रा के मुद्दों पर कार्य करता है। इसमें केवल 24 सीटें होती हैं, और भारत एक बहु-देशीय समूह (constituency) के रूप में इस बोर्ड में शामिल है। इस समूह में भारत के साथ बांग्लादेश, भूटान, नेपाल, श्रीलंका और अफगानिस्तान जैसे दक्षिण एशियाई देश शामिल हैं। चूंकि भारत इस समूह में सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, इसलिए आमतौर पर Executive Director भारत से होता है।
“IMF वैश्विक वित्तीय संकटों से निपटने के लिए देशों को वित्तीय सहायता प्रदान करके उन्हें समुचित आर्थिक नीतियों को अपनाने के लिए मार्गदर्शन करता है।”
भारत की वोटिंग पावर और कोटा
IMF में हर देश का योगदान और वोटिंग अधिकार उसके कोटा (Quota) पर निर्भर करता है। यह कोटा देश की अर्थव्यवस्था के आकार, वैश्विक व्यापार और भुगतान संतुलन जैसे मापदंडों पर आधारित होता है। भारत का वर्तमान कोटा लगभग 13,114 मिलियन SDR (Special Drawing Rights) है, जो IMF की कुल कोटा संरचना का लगभग 2.7% है। इसके साथ ही भारत की वोटिंग पावर लगभग 2.6% है, जो उसे IMF की निर्णय प्रक्रिया में एक मजबूत स्थिति देती है।
हालांकि अमेरिका, जापान, चीन और यूरोपीय देशों के मुकाबले भारत की वोटिंग पावर कम है, लेकिन विकासशील और दक्षिण एशियाई देशों के हितों की बात करें तो भारत का कद और प्रभाव कहीं अधिक व्यापक है। IMF की नई नीति निर्माण प्रक्रियाओं में भारत अक्सर जलवायु वित्त, डिजिटल मुद्रा और वैश्विक कर्ज़ संकट जैसे विषयों पर एक संतुलित और व्यावहारिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
IMF के निर्णयों में भारत की भूमिका
भारत का Executive Director न केवल भारत की स्थिति को प्रस्तुत करता है, बल्कि बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल आदि की आर्थिक ज़रूरतों और समस्याओं को भी IMF के सामने रखता है। जब कोई देश IMF से सहायता मांगता है, तो Executive Board उस प्रस्ताव पर चर्चा और मतदान करता है। ऐसे मामलों में भारत के प्रतिनिधि का मत निर्णायक भूमिका निभा सकता है, खासकर जब दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय मुद्दे सामने आते हैं।
इसके अलावा, IMF की आर्थिक निगरानी रिपोर्ट्स और समीक्षा दस्तावेज़ों में भारत की अर्थव्यवस्था पर विशेष ध्यान दिया जाता है। भारत IMF से तकनीकी सहायता, नीति सलाह और डेटा सहयोग भी प्राप्त करता है, जिससे देश की आंतरिक वित्तीय प्रणाली को और अधिक मजबूत बनाने में मदद मिलती है।
“अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) वैश्विक वित्तीय प्रणाली में एक प्रमुख संस्थान है। यह अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक मामलों को स्थिर करने और वैश्विक आर्थिक विकास को सुगम बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।”
वैश्विक विमर्श में भारत की भूमिका
IMF अब केवल कर्ज़दाता संस्था नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक नीतियों का मंच भी बन चुका है। इसमें भारत की भूमिका एक जिम्मेदार विकासशील शक्ति के रूप में उभरी है। चाहे वह IMF के G-24 समूह के ज़रिए विकासशील देशों के हितों की वकालत करना हो, या G-20 बैठकों में वित्तीय स्थिरता पर सुझाव देना हो, भारत हर स्तर पर सक्रिय भूमिका निभा रहा है।
भारत लगातार IMF में अपने कोटे और प्रभाव को बढ़ाने की दिशा में काम कर रहा है, ताकि वह वैश्विक आर्थिक संरचना में अपने बढ़ते महत्व के अनुरूप प्रतिनिधित्व पा सके।
अंत में..
IMF में भारत की भूमिका बहुआयामी, रणनीतिक और भविष्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। एक ओर वह अपने राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा करता है, वहीं दूसरी ओर वह क्षेत्रीय और वैश्विक स्तर पर विकासशील देशों की आवाज़ को मजबूती देता है। जैसे-जैसे भारत की अर्थव्यवस्था आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे IMF में उसका प्रभाव और ज़िम्मेदारी भी बढ़ती जा रही है। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत 21वीं सदी की वैश्विक आर्थिक संरचना में एक निर्णायक भागीदार बन चुका है।
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Tech
भारत में सोशल मीडिया और मोबाइल की लत : एक गंभीर चुनौती
आज देश में 80 करोड़ से ज़्यादा इंटरनेट यूज़र हैं और स्मार्टफोन लगभग हर हाथ में पहुंच चुका है।
भारत में डिजिटल क्रांति ने जिस तेज़ी से लोगों की ज़िंदगी को बदला है, वह अभूतपूर्व है। आज देश में 80 करोड़ से ज़्यादा इंटरनेट यूज़र हैं और स्मार्टफोन लगभग हर हाथ में पहुंच चुका है। लेकिन इस तकनीकी उन्नति ने कुछ गंभीर मानसिक, सामाजिक और सुरक्षा से जुड़ी समस्याएं भी पैदा कर दी हैं—Social Media Addiction, Mobile possessiveness (मोबाइल से अत्यधिक जुड़ाव) और Cyber Crime इनमें प्रमुख हैं। इस लेख में हम इन तीनों विषयों पर भारत के परिप्रेक्ष्य में विस्तार से चर्चा करेंगे।
सोशल मीडिया की लत: A Mental Crisis
आज भारत में फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, यूट्यूब और एक्स (ट्विटर) जैसे प्लेटफ़ॉर्म केवल संवाद के साधन नहीं रहे, बल्कि जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गए हैं। विशेष रूप से युवा वर्ग में सोशल मीडिया का अत्यधिक उपयोग चिंता का विषय बन चुका है।
लक्षण (Symptoms):
- हर कुछ मिनट में फ़ोन चेक करना
- लाइक्स, कमेंट्स और फ़ॉलोअर्स पर आत्म-सम्मान निर्भर होना
- रियल लाइफ में बातचीत से दूरी बनाना
- पढ़ाई, काम और पारिवारिक ज़िम्मेदारियों की अनदेखी
- तुलना के कारण तनाव या डिप्रेशन
भारत में स्थिति:
AIIMS द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, शहरी भारत के 30% किशोर सोशल मीडिया की लत से ग्रस्त हैं। कोविड-19 लॉकडाउन के दौरान डिजिटल माध्यमों पर निर्भरता और भी बढ़ी, जिससे समस्या और गंभीर हो गई।
Mobile possessiveness: हर समय मोबाइल से चिपके रहना
मोबाइल अब केवल संवाद का साधन नहीं, बल्कि भावनात्मक लगाव का केंद्र बन चुका है। मोबाइल को हर समय अपने पास रखना, किसी को हाथ तक न लगाने देना, चार्ज खत्म होते ही घबराहट होना—ये सब मोबाइल पज़ेसिवनेस के संकेत हैं।
प्रभाव:
- पारिवारिक और सामाजिक रिश्तों में दूरी
- नींद की कमी और आंखों की समस्याएं
- मानसिक बेचैनी और अकेलापन
- हर समय ‘फोमो’ (Fear of Missing Out) की भावना
भारत में यह प्रवृत्ति विशेष रूप से युवाओं और कामकाजी वर्ग में देखने को मिल रही है, जहां मोबाइल अब डिजिटल साथी बन चुका है, लेकिन यह साथ मानसिक शांति छीन रहा है।
Cyber Crime: बढ़ते डिजिटल अपराध
जैसे-जैसे भारत डिजिटल होता जा रहा है, साइबर क्राइम भी तेज़ी से बढ़ रहा है। सोशल मीडिया और मोबाइल का अति-उपयोग, और साइबर सुरक्षा की जागरूकता की कमी, लोगों को डिजिटल अपराधों का आसान शिकार बना रही है।
सामान्य साइबर अपराध:
- फिशिंग (फर्ज़ी ईमेल या वेबसाइट के ज़रिए धोखाधड़ी)
- साइबर बुलिंग (ऑनलाइन धमकाना या ट्रोल करना)
- हैकिंग और डेटा चोरी
- ऑनलाइन फ्रॉड और बैंकिंग धोखाधड़ी
- अश्लीलता और महिलाओं के खिलाफ साइबर अपराध
भारत की स्थिति:
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, भारत में हर साल साइबर क्राइम के मामले 15-20% की दर से बढ़ रहे हैं। इनमें से अधिकतर पीड़ित युवा, महिलाएं और बुजुर्ग होते हैं।
समाधान और सुझाव:
- डिजिटल डिटॉक्स: हर सप्ताह कुछ घंटे मोबाइल और सोशल मीडिया से दूरी बनाना
- स्क्रीन टाइम लिमिट: स्मार्टफोन में ऐप्स के उपयोग की सीमा तय करना
- परिवार और दोस्तों के साथ वास्तविक समय बिताना
- साइबर सुरक्षा की जानकारी लेना और सतर्क रहना
- मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करना और ज़रूरत पड़ने पर सलाह लेना
निष्कर्ष:
भारत में डिजिटल युग ने एक नई सोच और सुविधा दी है, लेकिन यह जिम्मेदारी के बिना नहीं आनी चाहिए। सोशल मीडिया की लत, मोबाइल पज़ेसिवनेस और साइबर क्राइम ऐसे मुद्दे हैं जो व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य, सामाजिक जीवन और सुरक्षा—तीनों को प्रभावित करते हैं। इनसे निपटने के लिए जागरूकता, संतुलन और तकनीकी साक्षरता अनिवार्य है।
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Art & Culture
वेम्बूर भेड़ को लेकर तमिलनाडु में बवाल..
वेम्बुर भेड़ तमिलनाडु की जैव-विविधता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है।
फरवरी 2025 में, 100 से अधिक किसानों ने थूथुकुडी कलेक्ट्रेट वेम्बूर भेड़ को लेकर में विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें भूमि अधिग्रहण रद्द करने की मांग की गई।करिसाल भूमि किसान संघ जैसे संगठन इस नस्ल को बचाने के लिए सक्रिय हैं।
वेम्बुर भेड़ क्या है?
वेम्बुर भेड़ तमिलनाडु के थूथुकुडी और विरुधुनगर जिलों की एक स्थानीय नस्ल है। इसे पोत्तु आडु इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसकी त्वचा पर लाल-भूरे या काले-फॉन रंग के धब्बे (पोत्तु) होते हैं। यह नस्ल मांस उत्पादन और स्थानीय समुदायों की आजीविका के लिए महत्वपूर्ण है।
वेम्बुर भेड़ की विशेषताएं
वेम्बुर भेड़ की पहचान इसकी शारीरिक और व्यवहारिक विशेषताओं से होती है। नीचे बिंदुवार जानकारी दी गई है::
- प्राकृतिक जीवनशैली:
- ये भेड़ें प्राकृतिक चराई पर निर्भर हैं और व्यावसायिक चारा नहीं खातीं।
- पसंदीदा चारा: छुई-मुई, बटेर घास, और कौआपैर घास।
- दिन में 6-8 घंटे चराई करती हैं और खुले में रहने के लिए अनुकूलित हैं।
- प्रजनन:
- मादा भेड़ प्रति चक्र एक मेमना पैदा करती है।
- प्रजनन उत्तर-पूर्व मानसून के बाद होता है।
- शुद्ध नस्ल बनाए रखने के लिए प्राकृतिक प्रजनन और चयन किया जाता है।
- आनुवंशिक महत्व:
- वेम्बुर भेड़ का किलाकारिसाल, मांड्या, और श्रीलंका की जाफना भेड़ों से निकट संबंध है।
- माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए के आधार पर यह हैपलोग्रुप A से संबंधित है।
वेम्बुर भेड़ का आर्थिक और सांस्कृतिक महत्व
- आर्थिक योगदान: वेम्बुर भेड़ें मांस उत्पादन के लिए पाली जाती हैं, जो स्थानीय किसानों की आय का प्रमुख स्रोत है। इससे बच्चों की शिक्षा और जीवन स्तर में सुधार हुआ है।
- सांस्कृतिक मूल्य: यह नस्ल तमिलनाडु की ग्रामीण संस्कृति का हिस्सा है और स्थानीय समुदायों में सम्मानित है।
- झुंड का आकार: औसतन एक झुंड में 38.6 भेड़ें होती हैं, जिसमें 1 नर, 24.5 मादा, और 13.1 मेमने शामिल हैं।
वर्तमान स्थिति और खतरे
2025 तक वेम्बुर भेड़ की स्थिति चिंताजनक है। इसके कुछ प्रमुख कारण हैं:
- जनसंख्या में कमी:
- 1998 में इनकी अनुमानित संख्या 31,000 थी। हाल के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन नस्ल खतरे में है।
- 2007 की पशुधन जनगणना के अनुसार, भारत में इनकी कुल संख्या 2,35,287 थी।
- औद्योगिक खतरा:
- थूथुकुडी में प्रस्तावित SIPCOT औद्योगिक परियोजना के तहत 1,000 एकड़ चरागाह भूमि का अधिग्रहण हो रहा है।
- इससे चारा क्षेत्र खत्म होने का खतरा है, जो भेड़ पालन को प्रभावित करेगा।
- किसानों का विरोध:
- फरवरी 2025 में, 100 से अधिक किसानों ने थूथुकुडी कलेक्ट्रेट में विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें भूमि अधिग्रहण रद्द करने की मांग की गई।
- करिसाल भूमि किसान संघ जैसे संगठन इस नस्ल को बचाने के लिए सक्रिय हैं।
- संभावित परिणाम:
- चरागाहों के नुकसान से किसानों को भेड़ पालन छोड़ना पड़ सकता है, जिससे नस्ल के विलुप्त होने का खतरा है।
वेम्बुर भेड़ का संरक्षण क्यों जरूरी है?
वेम्बुर भेड़ तमिलनाडु की जैव-विविधता और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके संरक्षण के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:
- चयनात्मक प्रजनन: शुद्ध नस्ल बनाए रखने के लिए वैज्ञानिक प्रजनन तकनीकों का उपयोग।
- चरागाह संरक्षण: औद्योगिक परियोजनाओं से चरागाहों को बचाने के लिए नीतियां।
- सरकारी हस्तक्षेप: संरक्षण कार्यक्रमों और वित्तीय सहायता की शुरुआत।
- जागरूकता अभियान: स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर पर इस नस्ल के महत्व को बढ़ावा देना।
वेम्बुर भेड़ के अनुकूलन और मृत्यु दर
- अनुकूलन: यह नस्ल शुष्क जलवायु और वर्षा आधारित कृषि क्षेत्रों के लिए अनुकूलित है। कम रखरखाव और प्राकृतिक चराई इसकी खासियत है।
- मृत्यु दर:
- झुंडों में: मेमनों की मृत्यु दर 10-15%, वयस्कों की 10%।
- खेत परिस्थितियों में: 0-3 महीने में 12.93%, 3-12 महीने में 18.81%, और वयस्कों में 13.22%।
- मौसम और प्रबंधन मृत्यु दर को प्रभावित करते हैं।
निष्कर्ष
वेम्बुर भेड़ या पोत्तु आडु तमिलनाडु की एक अनमोल स्वदेशी नस्ल है, जो अपनी अनुकूलन क्षमता, आर्थिक योगदान, और सांस्कृतिक महत्व के लिए जानी जाती है। हालांकि, औद्योगिक परियोजनाओं और चरागाह संकट के कारण इस नस्ल पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इसे बचाने के लिए तत्काल संरक्षण उपायों, सरकारी नीतियों, और सामुदायिक प्रयासों की आवश्यकता है।
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